रविवार, 24 जनवरी 2010

हमारे बाबूजी

हे पूज्य पिता

कितने तुफा कितनी मुश्किल । कितनी अड़चन कितनी बाधा।।
न रूके कहीं, न थके कहीं । न सहमे कहीं, न हारे कहीं ।।

जीत को लाए खींचकर सदैव । हे वीर पुरूष! हे पूज्य पिता ।।
जीवन की बघिया को सींचा । अपने विवेक अपने लहु से ।।

शख्त इतने की अपनों के दिल दहल जाए । नरम इतने कि शत्रु गले लग जाए ।।
यर्शअपयश की परवाह किए बगैर । सच्चाई की पथ पकड़ निरन्तर चले ।।

हर जीत की परवाह न की कभी । जीवन पथ को विस्तार दिया सुझ बुझ से ।।
जीवन के रास्ते पर हरदम । न्याय और सत् को करीब रखा सबसे ।।

करे लाखों नमन हे पूज्य पिता । सादर नमन है. हे पूर्ण पिता ।।
ईश्वर ने हमपर की विराट कृपा । आप जो मिले सम्पूर्ण पिता ।।

काटों पर हमें चलना सिखाया । पतझर में हमें हंसना सिखाया ।।
हे पूज्य पिता  हे पूर्ण पिता । आप जैसा कौन इस जहां में ।।

आज धन्य घड़ी. आज शुभ घड़ी । आज है हमारे प्रिय पिता का जन्म दिवस ।
इस पूण्य दिवस पर हम सब भाई बहन । हाथ जोड़े खडे आपके समक्ष ।।

हमसे जीवन में जो जो भूलें हुई । उन्हें बिसरा देना हे पूज्य पिता ।।
आशिर्वाद हमें आज फिर से दो । न्याय और सत् पर हम सदैव चलें ।।

आपके गौरव को सारे जहां में । सबसे उपर रख पाएं सदा. हे प्रिय पिता ।।
साल पच्चासी तक जिस तरह सम्भाला । ह्दय से लगाकर आपने अपनों को ।।

भाई, बहन, इष्ट, मित्र, सगे - सम्बन्धी एक नजर में रखा सभी को ।।
हे ईश्वर! अरज हमारी । सुनलो बस इतनी ।।

पिता का साया सदैव हमारे । सर पर रहे कृपा करना तुम इतनी।।
विनित
आपके अपने
२५-१-२०१०

बस हमारी माँ

हम ..........

हम सबकी माँ ........

कितनी कितनी कितनों की ही

बिगडी बात बनाती माँ

माँ होटो में ही

अपनी बात छुपाती माँ

मेरे तेरे इसके उसके दर्द से

रुआँसी माँ,

हम खा जाते चोट तो फिर,

हमको कैसे बहलाती माँ


रात काटती आँखों में जब

होते हम बीमार कभी,

सुबह सवेरे पर उनमें ही

सूरज नया उगाती माँ

भोर अंधेरे उठ जाती और सारे

काम सम्हालती माँ

रात अंधेरी जब छा जाती,

लोरी खूब सुनाती माँ

अब माँ के हाथ थके और

आँखों के सूरज बदराये,

फिर भी तो होटों पे हरदम

एक मुस्कान खिलाती माँ

हम माँ के पास रहें

या उससे दूर ही क्यूं न रहें,

वह रहती है मन में हरदम,

हम सबकी अपनी
माँ


माँ की डायरी से

नित्य याद   
  1. ५  बार   :    श्री गणेशाय नमः
  2. ३ बार    :   अहिल्या, द्रोपदी, तारा, कुंती, मंदोदरी,  (पतिव्रता) 
  3. ३ बार   : सीता, राधा, द्रोपदी 
  4. ३ बार   : ब्रह्मा, बिष्णु, महेश 
  5. ३ बार  : कशी, विश्वनाथ, हर हर महादेव   
 राम नाम लड्डू गोपाल नाम घी हारी नाम मिसरी घोल घोल पी
गीता, गंगा, गायत्री, सीता,  सत्य, सरस्वती, ब्रम्ह, बिदया, ब्रह्मा, वल्ली, त्रिसन्ध्य, मुक्त, गेहनी, अर्ध, मात्रा, चीता, नंदा, भव धावनी, भवनाशनी. 

शनिवार, 23 जनवरी 2010


माँ तेरी कृति है महान





माँ हमारा बस चले तो आपकी बने हर चीस को दुनिया को दिखाए !























गुरुवार, 21 जनवरी 2010

माया सराफ

दादा जी

।श्री।।

नमनश्रद्धेय पिताजी धनराज जी नाथानी
उपाधि : रायसाहब
द्वारा : सन 1940 तत्कालीन गवर्नर बिहार सरकार।
इस विशिष्ट उपाधि को श्रद्धेय तिा ने सन 1946 में तत्कालीन जिलाधीस के समक्ष स्वदेश प्रेम के हित लौटा दिया।
व्यापार व प्रतिष्ठान :
सन् 1920 बद्रीदास बंसीधर
सन् 1938 में राधा कृष्ण मालीराम
सन् 1945 में शंकरलाल रामविलास सुतापट्टी
सन् 1945 में शंकरलाल रामविलास कच्चीसराय
सन् 1946 में बद्रीदास रामगोपाल
सन् 1956 में जयरामदास रामोतार
विशेष शौक :
क्रिकेट मैच ह्यसन् 1940 अंग्रेज आफिसर्सहृ ः स्थान : जिला स्कूल मैदान मुजफ्फरपुर मैदान
विशेष उपलब्धि
बद्रीदास घाट स्थान : अखाडा घाट ः दादाजी श्रद्धेय बद्रीदास जी की स्मृति में ह्यमुज्फ्फरपुरहृ
बद्रीदास महादेव स्थान : अखाडा घाट ः दादाजी श्रद्धेय बद्रीदास जी की स्मृति में ह्यमुज्फ्फरपुरहृ
चुलेश्वरमहादेव ः ताऊजी एाद्धेय बंसीधर जी की स्मृति में ह्यमुज्फ्फरपुरहृ
बिल्डिंग स्थान : महिला शिल्पकला स्कूल ः माताजी पूज्यनीया बगवानदेई की स्मृति में ह्यमुज्फ्फरपुरहृ
केयरटेकर स्थान : दुधवा खारा ः नाथानी कष्ट निवारणी भंडार
अन्यान्य
दूधवावाला धर्मशाला ः द्वारिकानाथ पुरी
दूधवावाला धर्मशाला ः जगन्नाथ पुरी
दूधवावाला धर्मशाला ः बनारस
दूधवावाला धर्मशाला ः जनकपूर रोड
दूधवावाला धर्मशाला ः कलकता
दूधवावाला धर्मशाला ः दरभंगा
दूधवावाला धर्मशाला ः मुजफ्फरपुर
दूधवावाला धर्मशाला ः बैजन्नाथ धाम
टावर ः बैजनाथ धाम
सत्यनारायण मंदिर ः बैजन्नाथ धाम
कन्या पाठशाला ः दूधवा
कॉलेज ः दूधवा
नमन है पूर्वजों की रक्तधारा को जिनकी महान कीर्ति और गौरव आज भी अपनी वंशधारा को सुवासित कर रही है।
इस पुस्तक के प्रकाशन का उद्धेश्य अपने परिवार की गुणावली और वंशावली को दर्शाना नहीं है बल्कि आज से 200 वर्ष पहले राजस्थान के चुरू जिलान्तर्गत ग्राम दुधवा निवासी
पूण्यात्मा श्रद्धेय परमानन्द जी
पूण्यात्मा श्रद्धेय नाथूराम जी
पूण्यात्मा श्रद्धेय ज्ञानीराम जी
पूण्यात्मा श्रद्धेय साहेबराम जी
पूण्यात्मा श्रद्धेय जुगलकिशोर जी
पूण्यात्मा श्रद्धेय बद्रीदास जी
पूण्यात्मा श्रद्धेय पिताजी धनराज जी
को अन्तः भाव से श्रद्धाज्ांलि देना है तथा परिवार की आने वाली पीढि को पूर्वजों के शौर्य एवं गौरव का बोध कराना है।
हमारे पूर्वज इतने महान थे कि उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए पुस्तक की कदापि आवश्यकता नहीं।
इस पुस्तक का प्रकाशन तो केवल इस लिए किया जा रहा है कि आने वाली पीढ़ि अपने पूर्वजों की कीर्ति व सुख्याति से अनभिज्ञ न रह जाए।
हमारी वर्तमान व भावी संतान जीवन के प्रत्येक कदम पर अपने महान् पूर्वजों के कीर्ति गौरव को याद रख सके तथा उनकी महान् कीर्ति और गौरव आने वाली पीढि के समक्ष सदैव मार्गदर्शन बनकर उनके पथ को प्रज्जवल्लित करते रहें।
आज हमारे पास अपने पूर्वजों का कोई लिखित अथवा प्रमाणित दस्तावेज मौजुद नहीं है फिर भी वंशधारा में पूर्व पूर्व कुल के वंशजों की रक्तधारा मौजुद होती है और इस वंशधारा में अपने पूर्वजों के रक्त का जो तेज होता है उसे किसी प्रमाण अथवा दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होती।
ह्दय ही दस्तावेज होता है आत्मा ही प्रमाण होती है।
कुलदेवी माताजी ब्रह्याणी देवी ने कृपा कर जो सत् प्रेरणा दी उसी आधार पर अपने पूर्वज व पिता जी के जीवन पर आधारित कुछ पंक्तियां संक्षेप में लिखने का प्रयास किया गया है।
कहीं कोई भूल हो तो ह्दय से क्षमा प्रार्थी।

श्रद्धेय पिताजी धनराज जी नाथानी
वंशधारा
जानकारी के आधार पर
प्रथम पीढि श्रद्धेय परमानन्द जी एक कर्मठ धार्मिक व सिद्धान्तवादी व्यक्ति थे।उनके प्रति ग्राम खारा दुधवा में वहां के वासियों में विशेष श्रद्धा भावना थी।
द्वितीय पीढि श्रद्धेय नाथूराम जी श्रद्धेय परमानन्द जी के पुत्र नाथूराम जी बाल्यकाल से सत्यवादी. गम्भीर. मार्तापिता व गुरू के भक्त थे।अपने उच्च चारित्रिक बल तथा स्वभाव व चलन के आधार पर इन्होंने न केवल अपने मार्तापिता बल्कि दूर दूर तक के ग्राम मोहल्ले में अपना नाम फैला लिया था। इनके नाम की महत्वत्ता इतनी थी कि विगतकाल में दुधवावाले के नाम से पुकारे जाने वाले पूर्वजों को समय के साथ साथ इनके नाम के आधार नाथानी के नाम से पुकारा जाने लगा।
तृतीय पीढि श्रद्धेय ज्ञानीराम जी श्रद्धेय परमानन्दजी के पौत्र ज्ञानीराम जी भी अपने पिता और दादा की तरह साधारण व आदर्शमय जीवन निर्वाह किया करते थे।
चतुर्थ पीढि श्रद्धेय साहेबराम जी श्रद्धेय परमानन्द जी के परपौत्र साहेबराम जी एक रूवाबदार दूरदर्शी सिद्धान्तवादी अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे।
पंचम पीढि श्रद्धेय जुगलकिशोर जी श्रद्धेय परमानन्द जी के सरपौत्र जुगलकिशोर जी एक दूरदर्शी अत्यधिक संवेदनशील एवं सज्जन व्यक्ति थे।इनकी दूरदर्शिता का ही प्रभाव था कि आने वाली पीढियां गांव की अन्धेरी गलियों से निकलकर समयकाल के हिसाब से उंचाईयों की बुलन्दी को छूती चली गई।
षष्टम पीढि श्रद्धेय बद्रीदास जी श्रद्धेय परमानन्द जी की पीढि के षष्टम पुरूष हुए श्रद्धेय बद्रीदास जी जिनके त्याग व कर्मनिष्ठा नाथानी परिवार के वंशज शायद ही कभी भूूल न पाएं।
यही वे व्यक्ति थे जिन्होंने अपार आत्मबल का परिचय देकर बगैर किसी सहारे के खाली हाथ केवल पिता का आशिर्वाद लिए राजस्थान की तंग गलियों से निकलकर अपनी आनेवाली पीढि के उज्जवल भविष्य के लिए बडे से बडे संकटों का सामना किया और कभी हताश नहीं हुए।इनके प्रथम पुत्र श्रद्धेय ताऊजी बंसीधर जी का विवाह आदरणीय चन्द्रावली देवी के साथ हुआ जो बहुत ही सम्भ्रान्त परिवार की उच्च विचारों वाली नेक दिल महिला थी।
ताऊजी बंसीधर जी सदैव दादाजी बद्रीदास जी के काम काज में सहयोग करते। आदरणीय ताईजी चन्द्रावली देवी दादीजी सरस्वती देवी की आज्ञानुसार अपने परिवार की सेवा में रत रहती।परिवार के सभी सदस्य एक जगह मिलजुल कर रहा करते।
समय के साथ इन्हें तीन पुत्र रत्न व एक कन्या की प्राप्ति हुई।
1925 में में बहुत कम अवसथा में ही ताऊजी का देहावसान हो गया।
श्रद्धेय पिताजी धनराज जी नाथानी
नमन है श्रद्धेय पिताजी थनराज जी नाथानी स्वर्गवाशी पूण्यात्मा को जिनका विलक्षण व्यक्तित्व. उंची विचारधारा गहरी दूरदर्शिता. लोकप्रियता. दानप्रियता एवं न्यायप्रियता जगजाहिर थी।
साधारण जीवन और उच्च विचार उनकी विशिष्टता थी।
उनका व्यक्तित्व इतना गहरा और उंचा था कि उनके समक्ष किसी को भी कुछ कहने का साहस नहीं होता था।
दूरदर्शिता उनके रक्त के हर बूंद में थी बडे से बडे विकट कार्य को वे पल भर में कुशलता के साथ सम्पूर्ण कर डालते थे। उनके जीवन की नीजि उपलब्ध्यिां इतनी बडी थी कि वे आज भी न जाने कितने लोंगो के अन्दर जीवंत है और रहेंगी।उनके जीवन के विषय में. उनकी उपलब्धियों के विषय में कुछ भी लिखना उतना ही कठिन है जितना कि समुद्र की लहरों को गिनना।
वे एक सच्चे इन्सान थे. एक सच्चे समाज सेवी थे. एक सच्चे परिजन थे. एक सच्चे पिता थे और एक इन सबसे बढकर देश के एक एक सच्चे नागरिक थे।
न जाने कितने बेबसों को उन्होंने राह दिखाई। कितने आस्हाय बच्चों को पढ़ा लिखाकर उंची तालिम दिलाई। उनके द्वारा जिन लोंगो को तालिम दिलाई गई उनमें से एक थे लालनारायण सिंह 1975 में देश के सर्वोच्च स्थान भारत सरकार के एर्टोनी जनरल के पद पर पदासिन होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
ऐसे न जाने कितने जरूरतमंद बच्चों को उन्होंने गुमनामी के अंधकार से निकाल कर रौशनी का द्वार दिखाया।गरीब दुखी आतताईयों के लिए उनके दिल में विशेष स्थान था।
पास दूर जब जहां किसी ने उन्हें सहायता के लिए पुकारा श्रद्धेय पिताजी धनराज जी नाथानी कभी पीछे नहीं रहे।
कुलदेवि माता ब्रह्याणी की महान् अनुकम्पा से ख्याति और रूतबा उन्हें भरपूर मिला।
जीवन परिचय
श्रद्धेय पिताजी धनराज जी नाथानी राजस्थान के चुरू जिलान्तर्गत ग्राम खारा दुधवा निवासी परम श्रद्धेय परमानन्द जी के सातवें वंशज थे।
उनका जनम दुधवा खारा में लगभग सन् 1900 में हुआ।
उनके जनम के समय ग्रहों का ऐसा समावेश हुआ कि परिवार के सभी रूके कार्य बनते चले गए।

ाद्धेय परदादा जुगल किशोर जी परदादी सरस्वरती देवी एवं दादा बद्रीदस जी एवं पूज्यनीय दादी जी की खुशियों का कोई ठीकाना नहीं था।
प्रतीक्षारत व्यवसाय की सभी योजनाएं आगे बढने लगी। देश में उन दिनों अंग्रजों का शासन था।अंग्रेजों की गुलामी से त्रस्त भारत को मुक्त कराने के आन्दोलन चारों ओर चल रहे थे।
अंग्रजों के खिलाफ विरोध बढ रहा था। अंग्रेजी सरकार अपने प्रति बढते आन्दोलनों को कुचलने के नए नए तरीकों को नए आयाम दे रही थी।
राजस्थान भी इससे अछुता नहीं था।बडे बडे नेताओं के साथ आम जनता भी व्यग्रता से भारतवर्ष की आजादी की सुबह देखने को विह्ल थी।
इधर परिवार बढ रहा था।बढते परिवार की आवश्यकताओं को देखते हुए परिवार के अन्य सदस्य पहले ही राजस्थान से निकलकर कलकता व बिहार की तरफ व्यापार हेतू प्रयत्नशील थे।परदादा श्रद्धेय जुगलकिशोर जी ने गहन विचार विमर्श के बाद निर्णय लिया कि व्यापार वृद्धि हेतू अपने पुत्र दादा बद्रीदास जी को राजस्थान से कहीं बाहर भेजा जाए।
बाहर जाकर कारोबार स्थापित करना कोई साधारण काम नहीं था।बहुत प्रयास के बाद भी अडचनों का सिलसिला जारी रहा।
कोई सटीक राह बन नहीं पा रही थी।अंजान जगह अनजाने लोग काई सहारा कोई ठीकाना नहीं था। हर जगह कठिनाई ही कठनाईॐ
परन्तु अपनी आने वाली पीढि को गांव की अंधेरी गलियों से निकालने व अपने पिता श्रद्धेय जुगल किशोर जी परदादा जी परदादी सरस्वती देवी के आशिर्वाद से दादाजी बद्रीदास जी ने हिम्मत नहीं हारी।
राजस्थान स्थित अपने परिवार एवं कारोबार का कार्यभार छोटी अवस्था में ही पिता जी धनराज जी एवं ताऊजी बंसीधर जी पर छोडकर दादा जी बद्रीदास जी की यात्रा कभी कलकता. कभी बम्बई. कभी मुजफ्फरपुर की चालु रही।
पिताजी श्रद्धेय धनराज जी बाल्य अवस्था से ही जगरूक मेहनती व आज्ञाकारी थे।
अपने पिता श्रद्धेय बद्रीदास जी की अनुपस्थिति में अपने बडे भाई बंशीधर जी एवं दोनों बहन बाई भगवती एवं बाई ढबली के साथ मिलजुलकर अपने दादा श्रद्धेय जुगलकिशोर जी ह्यपरदादा जीहृ एवं अपनी दादी सरस्वती देवी ह्यपरदादी जीहृ एवं अपनी मां ह्यदादी जीहृ का ध्यान रखते।साथ ही दुधवा स्थित अपना कारोबार भी सम्भाला करते।